देश की आजादी की लड़ाई में देवबंद के आजादी के मतवाले भी हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे। 1857 की क्रांति में सरजमीं ने देवबंद में ही फिरंगियों द्वारा उलेमा समेत 40 शूरवीरों को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। अंग्रेजों के हथियार लूटने वाले एक गुरु शिष्य भी खुशी खुशी फांसी के फंदे पर लटक गए थे। देश की आजादी की लड़ाई में उलेमा और दारुल उलूम के योगदान को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वर्ष 1857 में देश की आजादी के लिए क्रांति का बिगुल फूंका गया तो देवबंद के हर वर्ग के लोगों ने हिस्सेदारी की। उलेमा ने आजादी के लिए न सिर्फ आंदोलन चलाए बल्कि अपनी जान भी न्योछावर कर बेमिसाल कुर्बानियां दी। मौलाना कासिम नानौतवी और मौलाना रशीद अहमद गंगोही के नेतृत्व में उलेमा के जत्थे ने शामली के मैदान में जंग लड़ी। इस जंग का उद्देश्य अंबाला से मेरठ और दिल्ली जाने वाली अंग्रेजों की रसद के रास्ते को खत्म करना था। इस लड़ाई में उलेमा ने अंग्रेजों को करारी शिकस्त देते हुए फतेह हासिल की। इस लड़ाई को इतिहास में शामली मार्का के नाम से जाना जाता है। इसके बाद उलेमा द्वारा वर्ष 1866 में देवबंद में दारुल उलूम की स...